हेलो दोस्तों स्वागत है आपका हमारे इस ब्लॉग पर आज का हमारा टॉपिक है की ट्रेन की पटरी पर पत्थर क्यों होते है और इसके क्या कारण है साथ में हम यह भी जानेगें की इसका क्या फायदा होता है। दोस्तों अपने कभी न कभी ट्रैन में सफर जरूर किया होगा या फिर आपने कभी रेलवे ट्रैक जरूर देखा होगा और आपके मन में एक बार ये सवाल जरूर आया होगा की ट्रैन की पटरी पर इन पत्थरो का क्या काम है। मगर इसका जवाब आपको नहीं मिला होगा या फिर अपने ज्यादा सोचा नहीं होगा। वैसे आपको बता दे की ट्रैन की पटरी पर इन पत्थरों का बहोत ही इम्पोर्टेन्ट रोल होता है।
आपको बता दे की पटरी पर इन पत्थरों का बहोत ही बड़ा लॉजिक होता है जिन्हे बहोत बड़े इंजीनियर ने बनाया है। आपको सबको देखने में यही लगता होगा की पत्थर के ऊपर लोहे की लाइन बिछा दी गयी है। जिस पर ट्रैन 200 km/p की रफ़्तार से दौड़ रही है। आपको बता दे ये बिलकुल ही गलत है। ट्रैन की पटरी पांच लेयर में बनाई जाती है। तब जाके ट्रैन की पटरी बनती है। जिसपे ट्रैन दौड़ती है। क्युकी ट्रैन का वजन ही 1 लाख टन के बराबर होता है जो की किसी नार्मल पटरी पर नहीं चल सकती है।
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यदि ट्रैन की पटरी को सही तरीके से नहीं बनाया गया तो ट्रैन का एक्सीडेंट होने के चांस बहोत ही ज्यादा बढ़ जाते है क्युकी उसमे बैठे हजारो लोगो की जिंदगी का सवाल है। जिसको पूरी इंजीनियर की देख रेख में बनाया जाता है। तो चलिए जानते है की Train की पटरी पर पत्थर क्यों होते है जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा पढ़े। चलिए शुरू करते है।
ट्रेन की पटरी पर पत्थर क्यों होते है
आपको बता दे की ज्यादातर लोगो को ट्रैन की पटरी देखने में बहोत ही आसानी लगती होगी की बस पत्थर और लोहे की लाइन बिछा के ट्रैन की पटरी बना दी गई है पर आपको देखने में जितना आसान साधारण लगता है उतना है नहीं ये। आपको बता दे की ट्रैन की पटरी सामन्य जमीन से थोड़ी उचाई पर बनाई जाती है। और साथ में इसमें कॉन्क्रीट के बने बड़े बड़े 7 फुट के पत्थर जो पहले लकड़ी के होते थे। जिन्हे रेलवे की भाषा में स्लीपर भी कहते है।
ये बात आपको भी पता होगी की एक ट्रैन का वजन 10 लाख टन का होता है। जिसको सिर्फ लोहे की बने पटरी नहीं संभाल सकती है। इसमें बहोत सारी बातों का ख्याल रखा जाता है जैसे की एक रेलवे ट्रैक बनाने के लिए सबसे पहले उस जमीन को थोड़ा नार्मल जमीन से ऊपर किया जाता है। फिर उसको बहोत ही मजबूती से दबाया जाता है ताकि हो वो जमीन में न धसे। फिर उसमे स्लीपर बिछाए जाते है। फिर उसमे नोकीले पत्थर बिछाये जाते है उसके बाद लोहे के लाइन बिछायी जाती है उसके बाद उस ट्रैक की टेस्टिंग होती है।
जब कई बार टेस्टिंग हो जाती है तो फिर उसपे ट्रैन चलने की अनुमति दी जाती है। आपको बता दे की रेलवे ट्रैक पर हमेसा नुकीले ही पत्थर क्यों बिछाये जाते है वो इसलिए ताकि जब भरी ट्रैन उस पर से निकले तो वो पत्थर फिसले नहीं अगर पत्थर गोल होंगे तो उनके फिसलने के चांस ज्यादा होते है। इसलिए ट्रैक पर हमेसा आपको नोकीले पत्थर ही देखने को मिलेंगे।
1 – रेलवे ट्रैक पर पत्थर कंक्रीट के बने स्लीपर को अपनी जगह पर मजबूती से बने रहने में बहोत मदद करते है। यदि पत्थर नहीं होते तो वो ट्रैन का भरी वजन सँभालने में परेशानी होती। इसलिए ट्रैक पर पत्थर होते है।
2 – अगर रेलवे ट्रैक पर पत्थर नहीं बिछाये जाते तो ट्रैक पर घास और पेड़ उग जाते जिससे की ट्रैन को चलने में बहोत दिक्कत होती। इस वजह से ट्रैक पर पत्थर होते है।
3 – जब ट्रैन पूरी रफ़्तार से दौड़ती है तो ट्रैक पर कम्पन पैदा होती है। जिससे ट्रैक फैलने का चांस होता है। जिसे ट्रैक पर पत्थर कम्पन कम करने और ट्रैक को फैलने से रोकता है।
4 – जब ट्रैन पूरी रफ़्तार से चलती है तो ट्रैन का पूरा वजन कंक्रीट के स्लीपर पर होता है। जिससे स्लीपर का हिलने की संभावना बढ़ जाती है। जो पत्थर उसे रोकने में बहोत मदद करता है।
5 – एक सबसे बड़ी फायदा ये भी होता है ट्रैक पर गिट्टी बिछाने से की ट्रैक पर जलभराव की समस्या नहीं होती है। पत्थर की वजह से ट्रैक पर पानी नहीं रुकता है।
6 – ट्रैक पर पत्थर होने से आग लगने की संभावना बहोत ही कम हो जाती है। पत्थर से आग भी नहीं लगती है।
तो इसलिए रेलवे ट्रैक पर पत्थर बिछाए जाते है अब आपके सारे सवालों का जवाब आपको मिल गया होगा की ट्रैक पर गिट्टी क्यों होती है।
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Conclusion
मुझे उम्मीद है की अब आपको ये पता चल गया होगा की ट्रेन की पटरी पर पत्थर क्यों होते है और इसका क्या कारण होता है। और आपको अब ये भी पता चल गया है की रेलवे ट्रैक कैसे बनाया जाता है। मुझे लगता है की आपके सभी सवालों के जवाब आपको मिल गए होंगे।
यदि आपके मन में अभी भी कोई सवाल है तो आप हमें कमेंट करके पूछ सकते हो। हम उसका उत्तर देने की पूरी कोशिश करेंगे। अगर आपको ये जानकारी पसंद आयी हो तो आप इस पोस्ट को दुसरो के साथ शेयर भी कर सकते हो। इस पोस्ट को पढ़ने के लिए आपका बहोत धन्यवाद है।
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